गौतम बुद्ध |
गौतम बुद्ध एक ऐसा व्यक्ति जो बुद्ध भगवान कहे जाते हैं। ये वह कहानी है जो इतिहास मे पढ़ाया जाता है। और हमेसा सभी प्रतियोगिता परीक्षाओं मे लगभग इससे जुड़े प्रश्न आते रहते हैं। तो आइये जानते हैं बौद्ध धर्म और गौतम बुद्ध से जुड़े महत्वपूर्ण जानकारी।
गौतम बुद्ध को एसिया का ज्योतिपुंज (लाइट ऑफ एसिया) कहा जाता है।
गौतम बुद्ध का जन्म 563 ई0 पूर्व मे वैशाली के निकट लुम्बिनी नमक स्थान पर हुआ था। उनके पिता का नाम शुद्धोदन और माता का नाम महामाया देवी था। एवं गौतम बुद्ध के पिता शक्यगण के मुखिया थे।
गौतम बुद्ध के जन्म के सातवे दिन ही उनकी माँ की मृत्यु हो जाती है और उनका लालन पालन उनकी मौसी प्रजापति गौतमी दकरती है।
गौतम बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था एवं उनका बिवाह 16 वर्ष की अवस्था मे ही यशोधरा नामक लड़की से होगया था।
गौतम बुद्ध के एक पुत्र भी हुआ जिसका नाम राहुल था। राहुल का अर्थ “एक और बंधन होता है।
सिद्धार्थ बचपन से ही चिंतनशील स्वभाव के व्यक्ति थे।
उन्हे महल से निकालने पर रोक था क्यूकी उनके पिता नहीं चाहते थे की सिद्धार्थ को बाहर हो रही बुराई और दुख दर्द का एहसास हो क्यूकी उनकी माँ नहीं थी।
एक बार पिता की गैरहाजरी मे महल से बाहर एक सारथी के साथ रथ पर घूमने निकले। घूमते हुए पहली बार एक वृद्ध व्यक्ति से मिले तो सारथी से पूछा ये कौन है और ऐसा क्यूँ है? क्यूकी ये कभी कोई वृद्ध व्यक्ति आज तक नहीं देखे थे। तो सारथी ने जबाव दिया ये एक वृद्ध व्यक्ति है ईक दिन सबको ऐसा होना पड़ता है।
दूसरी बार एक रोगी व्यक्ति से मिले और पूछा ये कौन है और ये ऐसा क्यू हैं? तब सारथी ने बताया ये एक रोगी व्यक्ति है। रोग बीमारी कभी भी किसी को आसकती है।
तीसरी बार एक मृत व्यक्ति को चार लोग कंधे पे ले जा रहे थे तो सिद्धार्थ ने पूछा ये इसे बांध कर क्यू लेकर जा रहे हैं? तब सारथी बताया ये व्यक्ति की आयु समाप्त होगाई है। और ये अब मर गया है इसलिए इसे जलाने लेकर जा रहा है। एक दिन सबको मारना पड़ता है।
और चौथी बार एक प्रशंचित सन्यासी से मिले जो ताप करने मे लिन था। उसकी दुर्वलता से पता चलता था की कई दिन से भूखे ताप कर रहा है। सिद्धार्थ ने पूछा ये कौन है और खुश क्यूँ नजर आरहा है? तब सारथी ने कहा ये ईश्वर को याद कर रहा है। ताप कर रहा है सभी मोह माया को छोडकर क्यूकी एक न एक दिन इसे भी वृद्ध होकर मारना है इसलिए तक कर कुछ ज्ञान अर्जित कर लोगो मे खुशी बांटना चाहता है।
ये चौथी बात सिद्धार्थ के मन मे बैठ गया। और 29 वर्ष की अवस्था मे अपनी पत्नी और बेटे राहुल को सोता हुआ छोडकर रात मे ही गृह त्याग दिए। बौद्ध धर्म मे इस घटना को “महाभिनिष्क्रमण” कहा गया है।
उनके प्रिय सारथी का नाम छंदक एवं उनके प्रिय घोडा का नाम कंथक था।
गृह त्याग के बाद गौतम बुद्ध सबसे पहली बार वैशाली गए (जो इस वक्त बिहार मे है) और वहीं वो अपने प्रथम गुरु “अलार कलाम” से मिले। और तप साधना का ज्ञान लिए और साथ मे मिलकर तप किए पर उन्हे वहाँ शांति नहीं मिली।
इसके बाद बुद्ध एक और विद्वान “राम रुद्रक पूत” के पास राजगृह आए जिसका नाम अब राजगीर है ये बिहार के नालंदा जिले मे स्थित है। राजगृह सबसे बड़े साम्राज्य मगध की राजधानी हुआ करती थी। आज भी यहाँ पहाड़ियाँ और वण आने वाले पर्यटको का मन मोह लेती है।
पर गौतम बुद्ध को यहाँ राजगृह मे भी शांति नहीं मिली। इसके बाद वह बोध-गया चले गए वहाँ निरंजना नदी के किनारे उरुवेला नामक स्थान पर पीपल वृक्ष के नीचे स्थान लगाकर तप करने लगे।
वहाँ उनके पाँच साथी भी थे जो बनारस (वाराणसी) से आए थे वो भी गौतम बुद्ध को श्रेष्ठ मानकर साथ मे ताप करने लगे।
वहीं पास मे एक सुजाता नाम की महिला रहती थी जब उसने देखा की छः सज्जन कठोर तप मे लिन हैं और वो भी बिना कुछ खाये पिये तब आकार उसने बुद्ध को समझाया। की कोई भी भूखे रहकर ज्ञान की प्राप्ति नहीं कर सकता क्यूकी भूखे रहने से हमारी इंद्रियाँ काम नहीं करती है। कोई फाइदा नहीं होगा आप फल खाकर सरलतम तरीके से तप करें।
तब सुजाता नामक महिला के विचारो से प्रभावित होकर बुद्ध ने कठोर तपस्या को त्यागते हुए सुजाता के हाथो से खीर खाकर माध्यम मार्ग को अपनाया।
जब उनके पाँच साथी येसब देखा तो उन्हे पाखंडी कह कर बुद्ध को छोड़ सारनाथ चले गए।
लेकिन गौतम बुद्ध वहीं रहकर ताप करते रहे और अंततः उन्हे 35 वर्ष की उम्र मे वैशाख की पुर्णिमा की रात सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हुई। जिसे बौद्ध धर्म मे “संबोधी’ कहा जाता है।
ज्ञान की प्राप्ति के बाद गौतम बुद्ध सबसे पहले ऋषिपतनम (सारनाथ) आए एवं प्रथम उपदेश अपने पाँच मित्रों को पालि भाषा मे दिए जो पाखंडी कह कर बुद्ध को छोड़ आए थे। बाद मे वे पश्चाताप किए।
बुद्ध ने वहीं अपने पंच साथियों एवं बनारस के एक व्यापारी यस के साथ मिलकर एक संघ बनाए इसे बौद्ध संघ कहा गया।
तापसु एवं कलिक नमक दो सुद्र व्यक्ति को इसमे सदस्य बनाया गया। उनके शिष्यों ने मगध को अपना प्रचार प्रसार का केंद्र बनाया तथा सरबादधिक उपदेश गौतम बुद्ध ने कौशल की राजधानी श्रावस्ती मे दिए। जहां एक अंगुली माल नामक डाकू को भी शांत किए जो लोगो को मार कर उसकी अंगुलियों का माला बनाता था।
मगध के राजा आजतशत्रु एवं बिंबिसार, कौशल के राजा प्रसेंजित, कौसम्भी के राजा उद्यायन इनके शिष्य हुए।
बुद्ध का सबसे प्रिय शिष्य का नाम आनंद एवं उपाली था। और धर्म प्रचार के पंचवे वर्ष आनंद के ही कहने पर बुद्ध ने संघ मे महिलाओं के प्रवेशकी अनुमति दिए।
संघ मे प्रवेश करने बाली प्रथम महिला प्रजापति गौतमी थी। जिसने गौतम बुद्ध की माँ की मृत्यु के बाद बुद्ध का पालन पोषण की थी।
गौतम बुद्ध के अन्य नाम – शाक्य मुनि, सिधार्थ, तथागत, एवं अर्हत भी था।
गौतम बुद्ध प्रचार प्रसार करते हुए हिरण्यवती नदी के तट पर बसा कुसीनगर (कुशीनारा) पहुंचे
यहीं कुशीनारा के पास कसिया नामक गाँव मे एक चंदचुंद नमक सुनार के घर मे भोजन के लिए पधारे। पर चंद चुंद बहुत गरीब था खाने के लिए कुछ नहीं के बराबर था। पर उसके पास एक सूअर था जिसे ही काटकर बहुत प्यार से सच्चे दिल से परोस कर दे दिया। अब प्यार से दिया हुआ तो राम भी सबरी का जूठा बैर खा लिए थे। फिर गौतम बुद्ध कैसे टाल देते। और उन्होने बड़े प्यार से सूअर का मांस खा लिया।
सूअर का मांस खा लेने के कारण उनकी तबियत बिगड़ गयी। और वही एक वन मे शाल ब्रिक्ष के नीचे 80 वर्ष की उम्र मे 483 ई0 पू0 बुद्ध ने अपने सरीर को त्याग दिए। उस समय उनका सबसे प्यारा शिष्य आनंद मौजूद था।
बुद्ध के मृत्यु के बाद उनके अवशेषों को 8 भागों मे बिभाजित किया गया और पीतल की बिभिन्न कलश मे रख कर 8 निश्चित स्थान मे स्थापित किया गया।
उसी आठ कलश स्थापित जगह को बौद्ध स्तूप कहा जाता है। जो जगह निम्न है।
विश्व शांति स्तूप राजगीर (राजगृह) |
1 लुम्बिनी
2 वैशाली
3 राजगृह
4 बोध गया
5 सारनाथ
6 श्रावस्ती
7 संकाश्य
8 कुशीनगर
गौतम बुद्ध हमेशा यही खोज मे लगे रहे की मानव जीवन मे दुख का मूल कारण क्या है। और इन्हे स्थायी रूप से दूर करने का क्या तरीका है। इनकी इन बिचारो को “ प्रतिप्य समुत्पाद” कहते हैं।
आखिर 15 अगस्त ही क्यू चुना गया उस दिन क्या हुआ था ?
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