Ninda |
जो व्यक्ति निंदा करने मे लगा रहता है। उसे यदि आप समझाएँ की निंदा करना ठीक नहीं है तो वह कहता है हम झूठ कहा बोल रहे सच ही बता रहे हैं इसका मैं प्रमाण भी दे सकता हूँ। इसके अलावा किसी व्यक्ति के मन मे घृणा, द्वेष, ईष्या, अहंकार नहीं है तो उसके कहने और बोलने का तरीका अलग होता है। वह सहानुभूति से व स्नेह से दूसरे को उसकी बुराई से छुड़ाने के लिए उसे मधुर शब्दों मे सुझाव देता है। वह बदनाम करने के भाव से बात नहीं कहता हैं। यदि कोई अभिमानवश, ईष्या या दोषवश अथवा घृणा से आक्रांत हो कर शव्द सैयम को या अनुसासन को तोड़ कर अभद्र तरीके से दूसरे की निंदा करता है। तो मानना चाहिए की वह स्वम भौतिकता के वशीभूत होकर अपने पाप बढ़ा रहा है। वह कर्तव्य नहीं अकर्तव्य कर रहा है। भलाई नहीं बुआई कर रहा है। समीक्षक या आलोचक ना होकर निंदक है। वह जागरूक या शुक्ष्म दृष्टा नहीं वलकी भौतिकता की निद्रा मे सोया हुआ है। मानव जीवन मे निंदा एक ऐसा विकार है जो आत्मवल को कमजोर करते हुए प्रगति का मार्ग अवरुद्ध करता है। साथ ही आत्मीयता को क्षति पहुंचाता है। हमे सदैव निंदा से बचना चाहिए।
और किसी ने कहा है "गलतियाँ उसी से होती है जो काम करता है।
निकम्मों की जिंदगी तो दूसरों की निंदा करने मे ही खत्म हो जाती है।"
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