आजतक जीतने धार्मिक पर्व मनाए जाते हैं लगभग वह पौराणिक कथाओं के अनुसार होता है। उन्ही कथाओं मे एक प्रचलित है की इस सृष्टि के रचयिता भगवान ब्रम्हा हैं। भगवान ब्रम्हा ने जब संसार की रचना की। उन्होने जीव-जन्तु, पेड़-पौधे तथा इंसान को बनाए, लेकिन उन रचनाओं मे स्वर नहीं था। तब उन्हे लगा की उनकी बनाई हुई दुनिया मे कुछ कमी रह गयी है। उसी समय अपने कमंडल से जल निकाला और जमीन पर छिड़क दिया जिससे चार हाथों बाली स्त्री प्रकट हुई। उनकी एक हाथ मे पुस्तक, दूसरे मे वीणा और तीसरे मे माला और चौथा हाथ वर (आशीर्वाद) मुद्रा मे था। ब्रम्हा ने इस सुंदर स्त्री को वीणा बजाने के लिया कहा, जब उस देवी ने वीणा बजाई तब ब्रम्हा की बनाई हर वस्तु, प्राणी, जीव-जन्तु मे स्वर आ गया। उसी समय ब्रम्हा ने उस देवी का नाम वाणी की देवी सरस्वती रखा। और वह दिन वसंत पंचमी का ही था। इसी वजह से वसंत पंचमी को माँ सरस्वती का जन्म दिन मनाया जाता है, और उन्हे विद्या की देवी कहा जाता है। शिक्षण संस्थानो मे इनकी पुजा के साथ घरो मे भी इनकी पूजा की जाती है।
माँ सरस्वती वंदना - वीणा को बाजा दो माँ
माँ सरस्वती पूजन मे पीला रंग को महत्व दिया जाता है। इनकी पूजन मे पीला पुष्प, पीला चन्दन, पीली धोती, पीला चावल, अर्पित किया जाता है। इसके साथ ही पूजन स्थान पर वाद्य यंत्र और पुस्तकें राखी जाती है।
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