आज की रेलगाङीयाँ कितनी आधुनीक हो चली है। यह तो आप देख हीँ रहेँ है। लेकीन जब रेलगाङी का निर्माण अपनी शैशव अवस्था मेँ था तो वैज्ञानीको ने इसे बनाने के लिए कितने पापङ बेले थे। पढ़ीए रोचकता से बनाया गया इस लेख को॥
॥विश्व की प्रथम रेलगाड़ी ॥
आज से लगभग सवा दो सौ वर्ष पूर्व यूरोप के कुछ उत्साही इंजीनियरोँ ने इस बात की कल्पना कि थी कि वे एक ऐसी गाङी तैयार करेँ, जिसे घोङोँ के स्थान पर मशीन द्वारा चलाया जा सके। इस दिशा मेँ अनेँक लोगोँ ने प्रयास भी किए किन्तु असफल रहे। सर्व प्रथम वर्ष 1769 ई. मेँ फ्रांसीसी सेना के एक इंजीनियर 'निकोलस जोसेफ कुग्रो' ने भाप से चलने वाली एक गाङी का निर्मान किया। 3.6 किलोमिटर प्रतिघंटा की गति से चलने वाली यह एक तोप गाङी थी। लेकिन यह शोर करने के अलावा चिँगारीयाँ बहूत छोङती थी। इसमे घोङागाङी से अधिक खर्च आता था। कुछ समय बाद इसका एक पहिया टुट गया जिससे यह उलट गई। यह गाङी अधिक उपयोगी नहीँ थी अत: इसे शास्त्रागार मेँ डाल दिया गया। गुग्रो द्वारा बनाई दुसरी भाप गाङी अभी भी पेरिस के कला संग्रहालय मे है। वर्ष 1770 से 1790 तक कईयोँ ने भाप से चलने वाला इंजन बनाया पर सभी असफल रहे। एक ट्रेविथिक नामक इंजीनियर कोर्निस के था उसने सङक परिवहन के लिए एक शानदार इंजिन गाङी बनाना चाहता था। वह 10 वर्षोँ तक अपने प्रयास मेँ लगा रहा। अंत मेँ 1801 ई. मे उसे लोहे की एक बङी इंजन गाङी बनाने मेँ सफलता मिली। और सङक पर परिक्षण मे सफल रहा।
घोड़े से खींची जाने वाली रेलगाड़ी |
लेकिन जब यह सङकोँ पर आग की चिँगारीयॉ छोङती हुई तेज आवाज करती भागी तो लोग इसे भुत समझ अपने-अपने घरोँ मे दुबक गए। ईसे हीँ विश्व की प्रथम इंजन गाङी कानाम "पफिँग डेविल" (छुक-छुक करने बाला शैतान) रखा। एक बार ट्रेविथिक ने 'बाँक्सिँग डे' पर अपने कुछ मित्रो को 'पफिँग डेविल' की सैर के लिए आमंत्रित किया। पर कुछ हीँ दुर दोङने के बाद अचानक इजन काम करना बंद कर दिया। ओर तिखी गंध फेल गई। ट्रेविथिक इजन के न काम करने पर उसे चालु ही छोङ दिया था इसलिए गाङी का बाँयलर सुख गया और इंजन मेँ आग लग गई। इस तरह इसका अंत होगया। पर ट्रेविथिक बङा साहसी था। उसने वर्ष 1803 मेँ दुसरी भाप इंजिन गाङी बनाईँ तथा उसे चलाकर कर्नवाल से लंदन तक ले गया। इस यात्रा मेँ इंजिन का कचुमर निकल गया था
ट्रेविथिक ने सोचा भाप इंजिन गाङी को सङकोँ पर नहीँ चलाया जा सकता अत: उसने पटरी पर चलने वाली भाप इंजिन गाङी तैयार की। गाङी तो तैयार हो गई लेकीन अब समस्या थी की इसका परिक्षण कहाँ किया जाए? क्योँकी उस गाङी के लिए बहूत लंम्बी पटरीयोँ की आवस्यकता थि, ट्रेविथिक ने इसके लीए बहुत प्रयास किया! एक दिन उसे मालुम हुआ कि साउस वेल्स मेँ पेन्टी डाराना लोहा कारखाने की अपनी एक घोङे से खीँची जाने वाली ट्राँम है जो कार्डिया तक जाती है। ट्रेविथिक नेँ लोहा कारखाने के मालिक से बात की तथा उन्होने अपनी भाप ईंजन गाङी परिक्षण के लिए राजी कर लिया। ट्रेविथिक की भाप इंजन गाङी को देखने के लिए काफी लोग एकत्रीत हो गए थे! नियत समय पर भाप इंजन गाङी को पटरी लाया गया। ट्रेविथिक स्वंय इस गाङी को चला रहा था। उसकी पाँच डिब्बे वाली गाङी ने 10 टन लोहे और 70 सवारियोँ के साथ 10 मिल लंम्बी पटरियोँ की यात्रा दो घंटो मेँ पुरी कर लि। इस तरह ट्रेविथिक की भाप इंजन गाङी विश्व की प्रथम रेलगाङी बन गई।
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