Derhgaon Halt |
एक तथ्य के अनुसार कहा जाता है। जव उस गाँव मे कुछ लोग हीं रहा
करते थे तव उस गाँव का कोई नामाकरण नहीं हुआ था। एक छोटा सा परिवार के रूप मे लोग
रहते थे। उस समय उस गाँव मे
चापाकल, सड़क,
तलाव, रेलगाड़ी, इत्यादि का कोई संसाधन नहीं था। उस समय
गाँव मे जल पूर्ति के लिए लोग कुआं का इस्तेमाल करते थे। कुछ दिनो वाद धीरे –धीरे जनसंख्या बढ़ी तो कुएं
पर स्नान इत्यादि करने मे दिक्कत होने लगी थी। जिसके कारण गाँव के कुछ लोग मिलकर
एक तलाव निर्माण का निर्णय लिया। और सभी की सहमति से गाँव के पूर्व दिसा मे एक
तलाव खोदा जाने लगा। जिससे स्नान करने, कपड़े धोने,
और भी कई कार्य मे आसानी हो।
ज़ोर शोर से तलाव खोदा जाने लगा। परंतु एका –एक सभी मजदूर जो
तलाव खोद रहे थे अशर्यचकित हो गए। क्योंकि तलाव से बहुत पुरानी और कीमती पत्थरों की मूर्तियाँ वाहर आ गयी, लोग समझ नहीं पा रहे
थे की आखिर ये मूर्तियाँ यहाँ दफन कैसे है। यह खवर आग की तरह आस पड़ोस के गांवों मे
भी फैल गई। लोग चमत्कार समझ कर मूर्तियों की दर्शन के लिए दूर-दूर से आने लगे।
तालाव खोदी जा चुकी थी अव इंतेजार था वर्षा होने का जिससे तलाव जलमग्न हो पाये। यह
तलाव आज भी पुरैनी पोखर के नाम से जाना जाता है। ऊपर दिखाया गया तलाव पुरैनी पोखर नहीं है। यह बड़ी पोखर है जिसका निर्माण वाद मे हुआ।
पुरैनी पोखर से निकाली गई मूर्तियाँ |
परंतु उसी समय अंग्रेज़ सरकार लॉर्ड कर्ज़न के एक योजना पर
देवगांव के नजदीक से गया से किउल रेल्वे लाइन बिछाया गया। क्योकि अंग्रेज़ सरकार का
केंद्र कोलकाता था। इसलिए वहाँ जाने का कई सुबीधाजनक मार्ग को विकसित किया जा रहा था। जव रेल्वे लाइन गाँव के नजदीक से
गुजरी तव अंग्रेजों ने पूछा ये कौन सा गाँव है?? तो लोगो ने वतया यह
देवगांव है।
परंतु ये शब्द उसके लिए मुस्किल थी। जैसे तुम को टूम बोलना, जनता को जनटा बोलना उसी तरह
देवगांव भी उसकी काली जुवान से ढेव्गांव निकला। और उसने तो इस कदर कहर वरपाया अपनी काली जुवान से की देवगांव- ढेव्गांव
होकर रह गया। लेकिन जव ब्रिटिस भारत से चला गया तव उत्साहित कहे या कुछ और नए
नौजवानो ने उसे ढेव्गांवके स्थान पर
डेढगांव नाम से प्रसिद्ध कर दिया। इस तरह देवगांव से डेढगांव हो गया। पर यह एक
तथ्य के आधार पर है। सत्यता का प्रमाण पूर्ण रूप से नहीं मिलता है।
आज डेढगांव की आवादी विकिपीडिया और 2011 की जनगणना के अनुसार 6,140 है। यह गाँव सरस्वती
पुजा के लिए प्रसिद्ध है। यहा हर वर्ष सरस्वती पुजा के शुभ अवसर पर दशहरा की तरह
मेले का आयोजन किया जाता है। और सांस्कृतिक कार्यक्रमों से गाँव वासियों का
मनोरंजन किया जाता है।
बड़ी पोखर |
सारसो का खेत - डेढगांव
सत्य है
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