एक वार विवेकानंद रेलगाड़ी मे सफर केआर रहे थे तव एक व्यक्ति उनसे पूछा
तब विवेकानंद ने सलिनता से कहा - हिन्दी मेरी मातृभाषा है। जब हम अपने देशवाशियों से बात करूँ तो लंदन की भाषा मे क्यो ? अपनी भाषा मे क्यो नहीं ? कोई भी व्यक्ति जितना अच्छा हिन्दी मे सोच सकता है उतना अँग्रेजी मे नहीं।
"आज के दौर मे जब अँग्रेजी भाषा को स्टेट्स सिंबल माना जाता है, आप हिन्दी भाषा को अहमियत देते हैं वजह" ?
Vivekanand |
मेरा मानना है की अगर आप चाय के पौधे को असम से दिल्ली लाकर लगाएंगे तो उतना अच्छा नतीजा नहीं देगा जितना वो असम मे देता है। साफ बात है हिन्दी से हमारे संस्कार जुड़े हैं। वैसे भी सिर्फ बोलने का सुख ही पूरा सुख नहीं होता मजा तो तब आता है जब सामने बाला व्यक्ति आपकी भावनाओं को उसी रूप मे समझ रहा है जिस रूप मे आप समझा रहे हैं। आप हिन्दी बोलते हुए अपने चेहरे का प्रतिकृया कई प्रकार से बदल सकते हो परंतु जब कोई अँग्रेजी बोलता है तो सिर्फ उसकी भाषा सुन के समझना पड़ता है। जबकि हिन्दी बोलने वाले का चेहरे के हाव भाव से ही कुछ समझ मे आ जाती है। इसलिए मैं हिन्दी को प्राथमिकता देता हूँ। और ज़्यादातर देश से बाहर भी हिन्दी भाषा का सम्बोधन करना ही उचित मानता हूँ।
ये विवेकानंद स्वामी के विचार थे - आपका क्या विचार है नीचे कॉमेंट बॉक्स मे जरूर प्रतिकृया दें। संपादक -विनय भारती
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